कुछ बातें जो दिलों में गहरी बैठ जाती हैं , जिनसे हम भागना भी चाहें तो भाग कर जाएँ कहाँ। गाहे बगाहे घूम फिर कर हम फिर वहीँ पहुंच जाते है उन्हीं यादों में जहाँ शायद हम लौट कर कभी भी न जाना चाहें। याद आती है मुझे अपनी शादी के दूसरे दिन की वो घटना जब मैं विदा होकर ससुराल पहुंची ही थी ,सब लोग नयी दुल्हन की स्वागत में लगे थे ,ढेर सारे ननदों और देवरों से घिरी मैं। सारे घर में ख़ुशी का माहौल ,बाहर ड्राइंगरूम में सारे चाचा ,मामा ,मौसा वैगरह इकट्ठे थे। हंसी मज़ाक ठहाके कीआवाज़ें आ रही थी की अचानक बाहर से कुछ शोर होने लगा कुछ सम्मिलित स्वर मेरे कानों तक पहुंच रही थी. ……… क्या हुआ ?? क्या हुआ ?? डॉक्टर को बुलाओ। ……। जल्दी गाडी निकालो वैगरह - वैगरह
मुझे याद है रत्ना दी कमरे में आई और कहा अजीत मौसा बेहोश हो गए है उन्हें हॉस्पिटल ले जाना है। सब लोग बाहर की ओर की भागे , मेरी कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। बहुत देर तक मैं अकेली उस कमरे में इन्तेजार करती रही। ………बहार से रोने की आवाज़ें भी आ रही थी जिससे मुझे अंदाज़ा हो गया था की कुछ बहुत ही बुरा घटित हो गया है। एक पल में ही सारा माहौल बदल गया था। कुछ समय के बाद राजीव कमरे में आये और कहने लगे अजीत मौसा ( राजीव के सबसे छोटे मौसा ) को दिल का दौरा पड़ा है और अब वो नहीं रहे। मुझे कैसा लग रहा था इसको मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती।
इस घटना से निकलने में मुझे कितना वक़्त लगा ये शायद मैं आज भी नहीं जानती या यों कहें मैं आज तक उस वाकये से उबर नहीं पाई हूँ। मेरे परिवार में आज भी कुछ लोग हैं जो मुझे शुभअवसर पर अपने घर बुलाना पसंद नहीं करते। मुझे समझ नहीं आता किसी की जीवन या मृत्यु के लिए मैं ज़िम्मेवार कैसे हो सकती हूँ ? जबकि मेरे हसबैंड से किसी को कोई परेशानी नहीं हैं, ये नियम कानून उनके ऊपर लागु नहीं होते। .......... ऐसा क्यूँ !
मुझे याद है रत्ना दी कमरे में आई और कहा अजीत मौसा बेहोश हो गए है उन्हें हॉस्पिटल ले जाना है। सब लोग बाहर की ओर की भागे , मेरी कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। बहुत देर तक मैं अकेली उस कमरे में इन्तेजार करती रही। ………बहार से रोने की आवाज़ें भी आ रही थी जिससे मुझे अंदाज़ा हो गया था की कुछ बहुत ही बुरा घटित हो गया है। एक पल में ही सारा माहौल बदल गया था। कुछ समय के बाद राजीव कमरे में आये और कहने लगे अजीत मौसा ( राजीव के सबसे छोटे मौसा ) को दिल का दौरा पड़ा है और अब वो नहीं रहे। मुझे कैसा लग रहा था इसको मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती।
इस घटना से निकलने में मुझे कितना वक़्त लगा ये शायद मैं आज भी नहीं जानती या यों कहें मैं आज तक उस वाकये से उबर नहीं पाई हूँ। मेरे परिवार में आज भी कुछ लोग हैं जो मुझे शुभअवसर पर अपने घर बुलाना पसंद नहीं करते। मुझे समझ नहीं आता किसी की जीवन या मृत्यु के लिए मैं ज़िम्मेवार कैसे हो सकती हूँ ? जबकि मेरे हसबैंड से किसी को कोई परेशानी नहीं हैं, ये नियम कानून उनके ऊपर लागु नहीं होते। .......... ऐसा क्यूँ !