Saturday, January 24, 2015

kuchh dil se.....

राजा भोज ने युद्ध में विजय के उपलक्ष्य में सारे नगर को भोज दिया. नाना प्रकार के व्यंजन इसमें बनाये गए व परोसे गए।  खाने वालों ने राजा भोज की उदारता की भरपूर प्रशंसा की , जिसे सुनकर  राजा भोज का सिर अहंकार से ऊपर उठ गया।  और अधिक प्रशंसा सुनने के उद्देश्य से वे वेश बदलकर नगर भ्रमण के लिए निकले।  मार्ग में उन्हें एक लकड़हारा मिला ,जो अपने कंधे पर लकड़ियों का एक बड़ा गट्ठर लिए चला जा रहा था।  राजा भोज उसे रोककर बोले " क्यूँ  भाई ! आज के दिन तो राजा ने भोज दिया था,फिर इतनी ज्यादा मेहनत किसलिए कर रहे हो ? क्या तुम्हें राजा का आमंत्रण नहीं मिला? " सुनकर लकड़हारा बोला " नहीं भाई ! निमंत्रण तो मिला था ,पर मैंने सोंचा कि यदि बिना परिश्रम खाने की आदत पड़ गई तो जीवन भर ऐसे ही निमंत्रणों की प्रतीक्षा करता रहूँगा और परिश्रम करने की प्रवृति गवां बैठूंगा।  आत्मगौरव अपने परिश्रम का खाने में ही है,दूसरों की प्रदत सहयता में नहीं। " राजा भोज का अहंकार लकड़हारे की बात सुनकर विगलित हो गया , पर साथ ही उन्हें गर्वानुभूति भी हुई की उनके राज्य में इतने नैष्ठिक नागरिक भी निवास करते हैं।  

Saturday, January 17, 2015

akhand jyoti se ....

एक गुरु  के  दो शिष्य थे , दोनों ईश्वर भक्त थे। दोनों ईश्वर उपासना के बाद रोगियों की सेवा किया करते थे.एक दिन उपासना के समय ही कोई कष्ट पीड़ित रोगी आ गया। गुरु जी ने पूजा कर रहे शिष्यों को बुलवाया। शिष्यों ने कहा - " अभी थोड़ी पूजा बाकी है ,पूजा समाप्त होते ही आ जायेंगे। 
                          गुरूजी ने दोबारा बुलवाया।  वे इस बार आ तो गए ,पर उनका मन किंचित खिन्न था। गुरूजी उन्हें समझाते हुए बोले " वत्स ! जप - पूजा का क्रम तो कभी भी सम्पन्न किया जा सकता है ,पर पीड़ित मानवता की सेवा का सौभाग्य  विरलों को ही मिलता है। तुम्हारे जप का पुण्य तो तुम्हें समय रहते मिलता ,पर उस पीड़ित की सेवा का संतोष तो हाथोंहाथ मिल जाता , जिससे तुम वंचित रह गए। " यह सुनकर शिष्य अपने कृत्य पर अत्यंत लज्जित हुए और उस दिन से सेवा को अधिक महत्व देने लगे। 

Wednesday, January 7, 2015

Akhnd Jyoti se !!


सूर्य का प्रकाश लेकर  किरणें  चली। एक कीचड़ में गिरी तो दूसरी पास उग रहे कमल के फूल पर। जो किरण कमल पर गिरी ,वह दूसरी से बोली " देखो !जरा दूर ही रहना।  मुझे छूकर अपवित्र न कर देना " कीचड़ वाली किरण सुनकर हंसी और बोली - बहन ! जिस सूर्य का प्रकाश लेकर हम  दोनों चली हैं उसे सारे संसार में अपना प्रकाश भेजने में संकोच नहीं है तो ये आपस में मतभेद कैसा? और फिर यदि हम ही इस कीचड़ को नहीं सुखायेंगी तो इस पुष्प को उपयोगी खाद कैसे मिल सकेगी ? दूसरी किरण अपने दंभ पर लज्जित हो सकती थी।  
आस्था  एक ऐसी चीज़ होती है जो शायद जीने के लिए बहुत जरुरी होता है। आस्था किसी से भी कहीं भी और कोई भी जगह से हो सकती है  …… ज़िन्दगी में कुछ ऐसे भी मोड़ भी आते है जब कोई राह नज़र नहीं आती तब शायद कोई आस्था ही हमें हिम्मत देती है.
.......... आज कल भागती दौड़ती में जब सब कुछ थम सा जाता है तो ऐसा लगता ही जैसे ज़िन्दगी ही रुक गई है। हम बस उस भागती ज़िन्दगी का ही हिस्सा बने रहना चाहते हैं।  

Friday, January 2, 2015

Zindagi

आजकल ज़िन्दगी चैनेल पर कुछ बहुत ही अच्छे प्रोग्राम आ रहे हैं। मैं आजकल ज़िन्दगी चैनल फॉलो  रही  हूँ  . हर सीरियल में कुछ मैसेज है। सास बहु के पचड़ों से दूर मिट्टी  की खुशबु देती धारावहिक दिल को सुकून देती है।इन धारावाहिको को देख कर ऐसा महसूस होता है कि पाकिस्तान और हिंदुस्तान दोनों की मिटटी की खुशबू की सुगंध एक सी ही है। हमारी समस्यायें  भी एक सी है ,और तो और हमारे सोंचने का तरीका भी एक सा ही है। काश हमारे बीच ये सरहद की दीवार न होती।
                       क्या खूब किरण खेर जी ने कहा है  ....... " चाँद सरहद के इस पार से देखें या उस पार से क्या फर्क पड़ता है "