एक गुरु के दो शिष्य थे , दोनों ईश्वर भक्त थे। दोनों ईश्वर उपासना के बाद रोगियों की सेवा किया करते थे.एक दिन उपासना के समय ही कोई कष्ट पीड़ित रोगी आ गया। गुरु जी ने पूजा कर रहे शिष्यों को बुलवाया। शिष्यों ने कहा - " अभी थोड़ी पूजा बाकी है ,पूजा समाप्त होते ही आ जायेंगे।
गुरूजी ने दोबारा बुलवाया। वे इस बार आ तो गए ,पर उनका मन किंचित खिन्न था। गुरूजी उन्हें समझाते हुए बोले " वत्स ! जप - पूजा का क्रम तो कभी भी सम्पन्न किया जा सकता है ,पर पीड़ित मानवता की सेवा का सौभाग्य विरलों को ही मिलता है। तुम्हारे जप का पुण्य तो तुम्हें समय रहते मिलता ,पर उस पीड़ित की सेवा का संतोष तो हाथोंहाथ मिल जाता , जिससे तुम वंचित रह गए। " यह सुनकर शिष्य अपने कृत्य पर अत्यंत लज्जित हुए और उस दिन से सेवा को अधिक महत्व देने लगे।
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