Thursday, January 3, 2013

rishte..

जब हम होंगे साठ साल के और तुम होगी  पचपन की ..........एक पुराना गाना सत्तर के दशक का आज के ज़माने में कुछ बेमानी हो गया है टूटते रिश्तों का आज का हमारा समाज शायद इस गाने को गुनगुना भी नहीं पायेगा
                          " इट्स माय लाइफ" की मानसिकता कम से कम मेरी समझ के तो परे है ...,हमारे बुजूर्ग  कहा करते थे की शादी दो परिवारों का मिलन होता है पर आजकल सारी जिम्मेदारिओं को पीछे छोड़कर एक उन्मुक्त जीवन जीने की चाह ही प्राथमिकता है इतने पर भी बस हो जाता तो शायद बात इतनी नहीं बिगड़ती ......दिन बीतते  न  बितते  दो लोग भी एकदूसरे को बर्दास्त नहीं कर पाते .........फिर शुरू हो जाता है सड़े -गले रिश्तों की शुरुआत .......जिसमे एकदूसरे के  उपर दोषारोपण के अलावा कुछ नहीं होता ........
                फिर शुरू होता उस रिश्ते से निकले की प्रक्रिया और जबरन अपनेआप  को खुश रखने की मशकत ........हम जिंदगी में कितने बड़े -बड़े कोम्प्रोमाईज़ कर लेते है पर छोटे -छोटे कोम्प्रोमाईज़ नहीं कर पाते। कितनी अजीब बात है ना ..............

No comments:

Post a Comment