अक्सर ये बहस छिड़ी रहती है कि एक हाउस वाइफ की जिंदगी अच्छी है एक जॉब करने वाली महिला की? कौन ज्यादा सुखी है या दुखी या यों कहें की कौन ज्यादा परफेक्ट है ...जॉब करने वाली महिलाओं का मानना है कि वे दोहरी जिम्मेदारियां निभाती हैं इसलिए वे अपने आप को ज्या दा परफेक्ट या यों कहें कि दुनियां के कदम से कदम मिलाकर चल सकती हैं ..............हाउस वाइफ के बारे में अक्सर उनकी राय यही होती है कि ये बस चूल्हा -चौकी ,घर बच्चे के अलावा कुछ नहीं जानती ...........इनसे बात करने के ज्यादा टॉपिक भी नहीं होते इनसे तो बस बच्चे,पति,कामवाली ,खाने-पीने की ही बातें की जा सकती हैं ये क्या जाने दुनियां में कहाँ क्या हो रहा है .....................
जबकी हाउस वाइफ की राय इनके बारे कुछ एसा है .........की इनको क्या है सारा काम तो ये अपनी कामवाली से करवाती हैं न इन्हें खाना बनाने की झंझट है न बच्चे पालने की झंझट .........सुबह घर से निकल जाओ शाम को जब घर लौटो तो सारा काम हो ही जाता है .............इनके पति भी घर का बहुत काम करते हैं रही सही कसर इनके मम्मी -पापा या सास ससुर पूरी कर देते हैं ......हम तो बिना सैलरी सारी ज़िन्दगी पिसे रहते हैं ...............ऊपर से ये भी कि इन्हें क्या इनके पास तो टाइम ही टाइम है सारा दिन तो घर पर आराम करती हैं .................मेरा तो ये मानना है की कोई भी काम आसान नहीं है अगर उसे पूरी कमिटमेंट के साथ किया जाये ........किसी के भी काम को कम कर के नहीं आंका जा सकता। ये सोंच भी गलत है कि हाउस वाइफ के पास बहुत टाइम होता है,.........एक हाउस भी बुद्धिजीवी हो सकती है ..........क्रेअटिव हो सकती एसी बहुत सारी मिसाल हमारे समाज में उपस्थित हैं ...........उसी तरह एक काम पर जाने वाली महिला के सीने में भी दिल होता है ....उन्हें भी अपने बच्चों ..अपने घर ...अपने पति से उतना ही प्यार होता है जितना एक हाउस वाइफ को ........
जबकी हाउस वाइफ की राय इनके बारे कुछ एसा है .........की इनको क्या है सारा काम तो ये अपनी कामवाली से करवाती हैं न इन्हें खाना बनाने की झंझट है न बच्चे पालने की झंझट .........सुबह घर से निकल जाओ शाम को जब घर लौटो तो सारा काम हो ही जाता है .............इनके पति भी घर का बहुत काम करते हैं रही सही कसर इनके मम्मी -पापा या सास ससुर पूरी कर देते हैं ......हम तो बिना सैलरी सारी ज़िन्दगी पिसे रहते हैं ...............ऊपर से ये भी कि इन्हें क्या इनके पास तो टाइम ही टाइम है सारा दिन तो घर पर आराम करती हैं .................मेरा तो ये मानना है की कोई भी काम आसान नहीं है अगर उसे पूरी कमिटमेंट के साथ किया जाये ........किसी के भी काम को कम कर के नहीं आंका जा सकता। ये सोंच भी गलत है कि हाउस वाइफ के पास बहुत टाइम होता है,.........एक हाउस भी बुद्धिजीवी हो सकती है ..........क्रेअटिव हो सकती एसी बहुत सारी मिसाल हमारे समाज में उपस्थित हैं ...........उसी तरह एक काम पर जाने वाली महिला के सीने में भी दिल होता है ....उन्हें भी अपने बच्चों ..अपने घर ...अपने पति से उतना ही प्यार होता है जितना एक हाउस वाइफ को ........
ekdum sahi i agree with u!!!
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