Thursday, February 5, 2015

akhand jyoti se

एक अमीर  आदमी समुद्र में मनोरंजन की द्रिष्टि से अपनी नाव लेकर निकला। नाव चलाते चलाते उसे पता ही नहीं चला कि  वह समुद्र में दूर निकल आया है और मार्ग भटक गया है। अपनेआप को अकेला जान वह बहुत घबराया और ईश्वर को याद करने  लगा। बहुत देर तक जब कोई मदद नहीं  पहुंची तो  क्रोध में भर कर वह ईश्वर को कोसने लगा कि ईश्वर भी कितना निष्ठुर है ,देखो मैं कितनी कठिनाई में हूँ और मेरी सहायता के लिए कोई भी उपलब्द्ध ही नहीं।
थोड़े समय में रात  हो गई। नाव बहते - बहते एक किनारे जा लगी। वहां तेज हवा चल रही थी ,जिसके कारण नाव के चप्पू आपस में रगड़े और उनमें आग लग गई। अब तक अमीर आदमी अपने जीवन की आशा छोड़ चूका था।  मन में पूरी निष्कामता  साथ  उसने भगवान  को याद किया और बोला। ....... " हे प्रभु ! मैंने तुझे मात्र स्वार्थ और अहंकार की पूर्ति के लिए ही याद किया है। जब तक मेरी इक्छाएँ  पूर्ण होती रही , मैं तुझे पूजता रहा और ऐसा न होने पर मैंने तुझे दुर्वचन भी बोले। मेरे वापस लौटने का एकमात्र सहारा नाव भी अब नहीं है। जीवन समाप्त होने से पूर्व अपने कर्मों के लिए क्षमा मांगता  हूँ। " उसका इतना कहना था कि एक अपरचित नाव किनारे  लगी   , एक व्यक्ति उतरा  और बोला -----"यहाँ आग जलती देखी तो  मदद  के लिए आ पहुंचा। लगता है तुम परेशानी में हो  "  अमीर आदमी को भान हुआ कि भगवान निष्कामता को  प्रेम करते हैं ,स्वार्थवश किये गए कर्मकांडों को नहीं। 

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