Tuesday, February 3, 2015

Short story....

एक दिन शरीर की इन्द्रियों ने सोंचा कि हम लोग परिश्रम करते -करते मर जाते हैं और यह पेट हमारी कमाई को मुफ्त में ही खाता रहता है। अब से हम कमाएंगे तो हम ही खाएंगे अन्यथा काम करना बंद कर देंगे। इस सुझाव पर सबने सर्वसम्मति से हाँ भरी।  पेट को इस प्रस्ताव का पता चलने पर उसने सभी इन्द्रियों को सझाया। ……… मैं तुम्हारी कमाई स्वयं नहीं खाता हूँ। जो कुछ भी तुम देती हो ,उसे तुम्हारी शक्ति बढ़ाने के लिए तुम्हारे पास भेज देता हूँ। वश्वास रखो ,तुम्हारा परिश्रम तुम्हें वापस मिल जाता है ,परन्तु यह बात किसी इन्द्रियों को समझ में नहीं आई। प्रस्ताव के अनुसार सभी इन्द्रिओं  करना बंद कर दिया।
पेट क्षुधा से तड़पने लागतो वह अन्य अंगों  को ऊर्जा दे पाने में भी असमर्थ रहा। परिणामस्वरूप सरे अंगों की शक्ति नष्ट होने लगी। इस स्थिति से सारे अंग घबराये। तब मस्तिष्क ने इन्द्रियों से कहा. -----"मूर्खों ! तुम्हारा परिश्रम कोई नहीं खा जाता। वह लौट कर तुम्हें ही वापस मिलता है। यह न  सोचो कि दूसरों की सेवा करके तुम्हारा नुकसान   होता है ,वस्तुतः जो कुछ तुम दूसरों को देती हो ,वह ब्याज़ सहित तुम्हारे पास लौट आता है। " अब इन्द्रिओं को सहकार और सहयोग की वास्तविकता समझ में आ गई। उन्होंने  पुनः काम करना प्रारम्भ का दिया।  

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