Thursday, February 19, 2015

akhand jyoti se

क्षत्रपति शिवाजी के दरबार में उत्सव का माहौल था। धीरे - धीरे महाराष्ट्र के विभिन्न गढों  को जीतने के क्रम में आज शिवाजी  महत्वपूर्ण विजय प्राप्त हुई थी। कल्याण का किला आज उनके विजय रथ के समक्ष आ गिरा था। यह किला अजेय माना  जाता था ,सो स्वाभाविक था कि उस पर विजय प्राप्त करने के उपरांत शिवाजी के सैनिकों में उत्स्व का माहौल बनता। इसी क्रम में जीती गई वस्तुओं को शिवाजी महाराज के सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा था सर्वप्रथम जीते गए हीरे- जवाहरातों को दिखाया गया। शिवाजी ने इन सब को कोषागार में रखने का आदेश दिया , ताकि इनसे प्राप्त मुद्राओं से प्रजा का पोषण किया जा सके।
 यह सब अभी चल ही रहा था कि कुछ सकुचाते हुए सेनापति मोरोपंत शिवाजी से बोले ---" महाराज ! सैनिक कल्याण के किले से आपके  कुछ उपहार लाये थे ,आप शायद उन्हें देखना चाहें। " शिवाजी से सहमति मिलने  पर मोरोपंत ने एक दरबार में   बुलवाई और बोले --"महाराज ! इसमें कल्याण के सूबेदार मुल्ला अहमद की सुन्दर पुत्रवधु गौहरबानो है। मुगलों में जीते गए राज्य की स्त्रियों से विवाह का प्रचलन है और यही सोंचकर हम गौहरबानो को आपकी सेवा में लाये हैं। " शिवाजी के मुख पर विषाद की रेखा आई और थोड़ा क्रुद्ध होकर वे बोले ---" मेरे साथ इतने वर्ष रहकर भी तुम मुझे समझ नहीं पाये मोरोपंत ! नारी कोई वस्तु नहीं ,जिस पर जीतने  के बाद कोई भी अधिकार स्थापित कर ले। गौहरबानो  को ससम्मान इनके पिता के पास छोड़ आओ। " छत्रपति शिवाजी के इस व्यवहार ने सिद्ध कर दिया कि हमारी संस्कृति नारी के सम्मान की संस्कृति है। 

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