Wednesday, February 11, 2015

Akhand Jyoti se...

नित्य की भांति संत तुकाराम का एक शिष्य उनके समीप धयान लगाने के लिए बैठा। वह जीतनी बार धयान लगाने का प्रयत्न  करता,उसका मन उतना ही अस्थिर हो जाता। आखिरकार वह गुरु के पास समाधान मांगने पहुंचा। उसकी समस्या सुन संत तुकाराम बोले ----"पुत्र! आज तुमने अन्न कहाँ से ग्रहण किया ? " शिष्य ने उत्तर दिया ----" गुरुदेव! आज नगर सेठ ने भोज रखा था ,तो वहीँ से अन्न ग्रहण कर के आ रहा हूँ। " गुरु गंभीर हुए और बोले ---" वत्स ! नगर सेठ का धन परिश्रम से उपार्जित नहीं ,वरन गरीब लोगों को पीड़ा देकर एकत्र किया गया है। " थोड़ा रूककर संत तुकाराम आगे बोले " अन्न जिससे प्राप्त होता है ,मन वैसे ही संस्कारों से प्रेरित होता है। अनीति से प्राप्त धन से उपजा अन्न चित्त में अस्थिरता ही पैदा करेगा और उसी तरह के संस्कारों को जन्म देगा। " शिष्य को अपने मन की अस्थिरता का कारण पता चला तो उसने संकल्प लिया की वह सदैव परिश्रम व् ईमानदारी से कमाया हुआ अन्न ही ग्रहण करेगा। 

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