Sunday, February 8, 2015

kartvya palan...

 पूर्व दिशा  में उषा की लालिमा दिखाई देने लगी। अन्धकार के विदा होने का समय निकट आ गया। भगवान भास्कर भी अपने रथ पर सवार होकर गगन पथ पर आगे बढ़ने  लगे। उन्होंने देखा कि अंधकार से लड़ता एक दीपक एकाकी खड़ा है। दीपक  की लौ ने अपना मष्तक उठाकर  सूर्य को प्रणाम  किया। सूर्य देव को यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि दीपक ने अपना कर्तव्य अच्छी प्रकार निभाया है। उन्होंने दीपक की प्रशंसा की। दीपक सहज भाव से बोला --" सूर्यदेव ! संसार में अपने कर्तव्य पालन से बढ़कर कोई पुरस्कार हो सकता है ,मैं नहीं  जानता। मैंने तो आपके द्वारा दिए गए  उत्तरदायित्वों  का निर्वाह किया है ,इसमें प्रशंसा की बात ही क्या ?" सूर्यदेव संतुष्ट होकर आगे बढ गये. दिए गए कर्तव्य की पूर्ति महानता का प्रतीक होती है। 

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